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बीमारी और पर्यावरण का सीधा नाता है। प्रकृति का संतुलन बनाए रखना हमारे अस्तित्व के लिए ज़रूरी है, यही आज की आपदा का संदेश है, भविष्य के लिए   

कोरोनावायरस  ने पूरी दुनिया में हंगामा मचाया हुआ है, और आशंका है कि आने वाले सालों में ऐसे ही और ख़तरनाक वायरस हम इंसानों को संक्रमित कर सकते हैं।  

इसका मुख्य कारण है पर्यावरण को नुक़सान । कोरोनावायरस से पहले ऐन्थ्रैक्स, जीका, ईबोला और निपाह जैसे वायरस पिछले कुछ सालों में फैले हैं। यह सब वायरस जानवरों से इंसानों में आए हैं और वो भी सबसे ज़्यादा जंगली जानवरों से । 

कईं जानवरों के शरीर में वायरस और बैक्टीरिया घर बना लेते हैं उन्हें बिना नुक़सान पहुँचाए लेकिन इंसानों में यही वायरस महामारी का रूप ले लेते हैं।

चूहे, चमगादड़, पंछी, सूअर, बंदर ऐसे इन्फ़ेक्शन फैला चुके हैं । 

कईं जानवरों के शरीर में वायरस  और बैक्टीरीआ घर बना लेते हैं उन्हें बिना नुक़सान पहुँचाए पर इंसानों में यही वायरस महामारी का रूप ले लेते हैं

सड़क, बाँध, खनन, खेती या लकड़ी के लिए जंगलों की कटाई की वजह से इंसान और जंगली जानवरों का मिलना ज़्यादा होने लगा है । कभी वो हमारी बस्तियों में आते हैं तो कभी हम या हमारे पालतू जानवर जंगली इलाक़ों में जाते हैं और यहीं से वायरस  एक जन्तु से दूसरे में चले जाते हैं। 

इस रिपोर्ट को विडीयो में देखें 

जैसे निपाह वायरस का सबसे पहला प्रकोप 1998 में मलेशिया में हुआ था। उस समय कम्पनियों ने चमगादड़ों से भरे जंगल में सूअर पालना शुरू किया और निपाह वायरस को चमगादड़ से सूअर और सूअर से इंसान में आने में ज़्यादा समय नहीं लगा। 

अभी कोरोनावायरस के स्रोत का मालूम नहीं चला है पर ज़्यादातर वैज्ञानिक यही मानते हैं कि किसी जंगली जानवर से यह वायरस इंसान के पास रहने वाले जानवर में आया और फिर पूरी दुनिया में फ़ैल गया।

जब हमारे जंगल घने थे तब ऐसे वायरस इतना विराट रूप नहीं लेते थे, उनका इंसानों तक पहुँचना आसान नहीं था 

भारत जैसे देश में यह समस्या और भी गम्भीर बन जाती है क्योंकि यहाँ न सिर्फ़ जानवरों  की संख्या ज़्यादा है, बल्कि तेज़ी से हो रहा विकास और शहरीकरण जंगलों को नुक़सान पहुँचा रहा है ।  

ऊपर से हमारी भारी जनसंख्या ऐसी बीमारियों को बढ़ाने में मदद करती है । 

कोरोनावायरस जैसे रोगाणु धरती का संदेश है कि हम पर्यावरण से ज़्यादा छेडछाड  न करें । हमें इस इशारे को समझते हुए सादा जीवन अपनाना चाहिए और अपने आसपास के पेड़ों और जंगलों को बचाने के लिए काम करना चाहिए ताकि आगे कोई नया कोरोनावायरस न फैले।