दिल्ली में यमुना को उसके मूल रूप में लाने के लिए लगभग 23 सालों से प्रयास किए जा रहे हैं। बावजूद इसके यमुना की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। बात चाहे वर्ष 2010 में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स की जगह बदलने को लेकर हो या फिर अभी हाल ही में हुए आर्ट ऑफ लिविंग के वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल का मामला हो, हर जगह आवाज उठाने में यमुना जिए अभियान सबसे आगे रहा है। हमने बात की अभियान के कन्वेनर मनोज मिश्रा से।
प्र: यमुना की स्थिति सुधारने के लिए वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत की गई। आज लगभग 23 साल हो चुके हैं। लेकिन यमुना को लेकर जो दावे किए गए थे, उसके अनुसार कुछ नहीं हो पाया। आप इसका क्या कारण मानते हैं ?
यमुना एक्शन प्लान गंगा एक्शन प्लान पर आधारित है। और समस्या दोनों प्लान में एक ही रही है, कि उनकी स्थिति को समझे बिना उनका हल ढ़ूंढ़ने का प्रयास किया गया है। आपने नदियों को समझा नहीं और बिना समझे उनकी सफाई में जुट गए। नदियां कोई नहर नहीं हैं। वे जीवित तंत्र हैं। जब तक आप उनके जीवन को वापस नहीं लाएंगे, नदियां वापस नहीं आ सकतीं। इनके प्राकृतिक बहाव को सुनिश्चित करना ज़रूरी है। मात्र एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) बना देने से या फिर सीवरेज को नदियों में गिरने से रोक देने से नदियां साफ नहीं हो सकतीं। लेकिन यह सब भी ऐसा नहीं हुआ जिस पर संतुष्ट हुआ जा सके। दिल्ली क्षेत्र में यमुना में पानी नहीं सिर्फ सीवेज और कारखानों का प्रदूषित पानी ही बहता है।
प्र: केजरीवाल सरकार यमुना के पानी को तीन साल में नहाने लायक करने का दावा कर रही है। उनके पास ऐसा कौन सा रामबाण है ?
देखिए ऐसा कोई रामबाण तो हमें भी नजर नहीं आ रहा है। हां सिर्फ एक ही बात समझ में आती है, कि उनकी कुछ करने की मंशा है। लेकिन सिर्फ मंशा से काम नहीं चलता। जब तक आपका रोड मैप सही नहीं है, आपकी प्लानिंग सही नहीं है, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसा न होने से तो वही होगा जो पहले होता आया है। लेकिन केजरीवाल सरकार कुछ मामलों में किस्मत वाली रही है। यह सरकार फरवरी में बनी और जनवरी के महीने में एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने यमुना के पुनर्जीवन के लिए एक रोड मैप बनाया था। एक तरह से इस सरकार को तो बना बनाया रोड मैप मिल गया है। अब उन्हें इसे बस कार्यांवित करना है।
लेकिन उस रोड मैप को बने भी करीब डेढ़ साल हो गया है। मुझे नहीं लगता कि उसको लेकर किसी भी विभाग के द्वारा कोई प्रगति हुई है। अब चाहे वो दिल्ली सरकार हो, चाहे डीडीए हो या फिर पर्यावरण विभाग ही क्यों न हो। इसमें इन विभागों के अलावा कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और उत्तराखंड के लिए भी निर्देश थे। कहने का मतलब यह है कि यह जो फैसला था वह बहुत ही व्यापक था।
यह रोड मैप यमुना की हर स्थिति को देखते हुए बनाया गया था। लेकिन हम देखते हैं कि पिछले डेढ़ साल में कुछ पॉजीटिव करने की बजाय सरकार ने श्री श्री रविशंकर जी के अभी हाल ही में हुए प्रोग्राम को यमुना की खादर पर करने देने की अनुमति देकर उस फैसले का ही उल्लंघन कर दिया जिसमें इस जगह पर किसी भी तरह के स्थायी या अस्थायी निर्माण की मनाही थी। ऐसे में इस सरकार से कुछ सकारात्मक करने की क्या उम्मीद की जा सकती है।?
प्र: एनजीटी का यह रोड मैप आखिर है क्या ?
यह रोड मैप वास्तव में वह दिशा-निर्देश ही हैं, जो कि यमुना को पुनजीर्वित करने के लिए एनजीटी ने जनवरी 2015 में दिए थे। वैसे तो इसमें बहुत सी बातें कही गई हैं। लेकिन इसमें इन बातों पर मुख्य रूप से फोकस किया गया है:
- यमुना में प्राकृतिक बहाव को सुनिश्चित करने के लिए एक्शन प्लान बनाना
- यमुना में पूजा सामग्री या कूड़ा फेंकने वालों पर पांच हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। इसके साथ ही जो भी नदी में मलबा डालते हैं तो उन्हें 50 हजार रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा
- शहर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या को बढ़ाया जाए और पहले से मौजूद ट्रीटमेंट प्लांट जो अपनी क्षमता के अनुसार काम नहीं कर रहे हैं, उन्हें सुधारा जाए
- यमुना के बाढ़ मैदान (किनारा-विस्तार) पर किसी भी तरह का स्थायी और अस्थायी निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता
- इस जगह पर सब्जियां और दूसरे खाद्य पदार्थ की खेती पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध है। इसके साथ ही बाढ़ मैदान पर पहले से मौजूद स्थायी और अस्थायी संरचना को ढहाने के निर्देश भी ट्रिब्यूनल ने दिए हैं ।
प्र: जहां भी यमुना के नुकसान की बात आती है, वहां आवाज उठाने में यमुना जिए अभियान सबसे आगे रहता है। अभियान ने अभी हाल ही में हुए वर्ल्ड कल्चरल फेस्टिवल या फिर वर्ष 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेल की जगह बदलने को लेकर पुरजोर प्रयास किया। लेकिन उसे असफलता ही हाथ लगी। क्या कारण है कि अभियान को गंभीरता से नहीं लिया जाता ?
देखिए अभियान का मुख्य कार्य होता है जागरूक करना, जो लोग उसके लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें सचेत करना। और यह सब अभियान ने किया है और कर रहा है। कोई भी गैर सरकारी संस्था, सरकारी संस्था को रिप्लेस नहीं कर सकती। हां सिर्फ उन्हें चेता सकती है, उन्हें जिम्मेदारी का अहसास करा सकती है। और पिछले दस सालों से अभियान यही चीज करता आ रहा है। और उन दस सालों के प्रयासों का ही असर है कि आज न सिर्फ शहर में बल्कि देश में भी लोगों की यमुना के बारे में, उसकी परेशानियों के बारे में समझ बढ़ गई है।
अब जहां तक रही अभियान को गंभीरता से लेने की बात तो यह तो सरकार के ऊपर है कि वो किसी चीज को कैसे समझ रही है, कैसे देख रही है। क्योंकि किसी भी अभियान की अपनी सीमाएं होती हैं। और इन सीमाओं में रह कर जो कुछ भी किया जा सकता था, वह अभियान ने किया और कर रहा है।
प्र: यमुना को फिर से जिंदा करने की दिशा में अभियान खुद के स्तर पर क्या प्रयास कर रहा है ?
अभियान पिछले तीन सालों से यानी वर्ष 2014 से भारत नदी सप्ताह मनाता आ रहा है। इसमें उन लोगों को बुलाया जाता है, जो कि देश के कोनों कोनों में नदियों पर काम कर रहे हैं। यह नवंबर के महीने में दिल्ली में मनाया जाता है। इसमें नदियों से जुड़े मुद्दों को लेकर विचार विमर्श होता है और एक्शन प्लान बनाया जाता है। इस बार कार्यक्रम में पूरे देश में नदियों की स्थिति पर चर्चा होगी। इस पर एक दस्तावेज तैयार किया जाएगा और नदियों की सही स्थिति लोगों को बताने के लिए इस दस्तावेज को जगह-जगह पहुंचाया जाएगा।
कोशिश यह है कि जिस तरह से आईयूसीएन का रेड लिस्ट ऑफ स्पीशीज है, उसी तरह से देश में सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों की स्थिति जानने के लिए रेड लिस्ट ऑफ रिवर्स बनाया जाए। देश भर की दस ऐसी संकटग्रस्त नदियों, सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों के बारे में चर्चा होगी। उन्हें कैसे बचाया जा सकता है। कैसे मेन स्ट्रीम किया जा सकता है। इस पर विचार विमर्श होगा।
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