ऊँट को प्रासंगिक रहने के लिए इसके नए उपयोग खोजने होंगे। इसकी चमड़ी से बने उत्पाद एक विकल्प हो सकते हैं
आज ऊँट पालक एवं ऊँट दोनों अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। वर्तमान परिवेश में ऊँट पालन आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है। पहले ऊँट को यातायात, खेती और सुरक्षा बलों द्वारा सीमा की पहरेदारी के लिए इस्तेमाल किया जाता था ।
दो पहिया वाहन, ट्रैक्टर और रेत में चलने वाले वाहनों के आने से, ऊँट का उपयोग घट गया । राजस्थान सरकार ने 2014 में इसे राज्य पशु घोषित किया और ऊँट के अंतर- राजीय ख़रीद पर इस आशंका से रोक लगा दी कि इसका गोश्त बिकता है ।
इस सबके चलते 20वें मवेशी जनगणना के मुताबिक़ पिछले सात सालों में ऊँट की संख्या में 37.5 प्रतिशत की गिरावट पायी गयी। अतः अब ऊँट पालन व्यवसाय में नई संभावनाएँ तलाशने की ज़रूरत है।
आधुनिक युग में नई संभावनाएँ दूध एवं उसके उत्पाद, खाल, पर्यटन, हड्डी इत्यादि के रूप में पैदा हुई है। अगर इसमें सही निवेश किया जाए तथा परंपरागत तरीकों में कुछ नवीन तरीकों को भी समाहित किया जाए तो ऊँट पालक एवं ऊँट दोनों अपने अस्तित्व को क़ायम रख सकेंगे।
आइये जानते हैं कि ऊँट के चमड़े के क्या गुण होते है और इससे ऊँट पालन व्यवसाय में कैसे मुनाफा कमाया जाए
ऊँट के चमड़े का उपयोग जूते एवं चप्पल बनाने में किया जा सकता है। ऊँट के चमड़े से पानी एवं दूध रखने के लिए बर्तन बनाये जाते हैं। इसके चमड़े का उपयोग बैग, बेल्ट, जूते, उपहार के डब्बे, मोबाइल कवर, फोल्डर-सोल्डर बैग इत्यादि बनाने के लिए किया जा सकता है। दुबई में ऊंट चमड़े से बने हैंड बैग की शुरूआती क़ीमत लगभग 3650 दिनार (72,976 रुपए) होती है।
गाय, भैंस के चमड़े से ज़्यादा टिकाऊ
ऊँट के चमड़े में गाय के चमड़े से ज़्यादा टीयर स्ट्रेंथ होता है, जो इसे अधिक टिकाऊ बनाता है। ऊँट की खाल 2-3 मिमी मोटी होती है। प्राकृतिक रूप से मौजूद दाने ऊँट के चमड़े का एक विशिष्ट गुण होता है और ये दाने वयस्क जानवरों में अधिक होते है।
ऊँट के चमड़े में गाय / भैंस के चमड़े से 10 गुणा ज़्यादा रेशे होते हैं जो इसे मुलायम और सबल होने के बावजूद भी ज़्यादा मज़बूत बनाते है। ऊँट के चमड़े एवं खाल की इन विषेशताओं तथा अन्य देशों में मिलने वाली अच्छी क़ीमत ऊँट के चमड़े एवं खाल आधारित उद्योग में काफ़ी संभावनाएँ रखता है। इस क्षेत्र में निवेश करना लाभकारी हो सकता है।
ऊँट का चमड़ा मुख्य रूप से दो चीजों के लिए जाना जाता है। पहला इसकी असाधारण टीयर स्ट्रेंथ और दूसरा खूबसूरती से तैयार उत्पाद पर इसका आकर्शक पैटर्न। यदि आप इनमें से किसी एक की तलाश कर रहे हैं, तो इसको प्राथमिकता दें।
ऊँट के चमड़े एवं खाल की इन विषेशताओं तथा अन्य देशों में मिलने वाली अच्छी क़ीमत ऊँट के चमड़े एवं खाल आधारित उद्योग में काफ़ी संभावनाएँ रखता है
ऊँट का चमड़ा पतला और लचीला होता है। यह पारंपरिक तरीकों के बजाय आज के आधुनिक टैनिंग विधि से और अधिक निखारा जा सकता है ।
को आधुनिक रूप से बढ़ाया जा सकता है। ऊँट कठिन परिस्थितियों के लिए निर्मित जीव है और कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए इसकी त्वचा भी विशिष्ट रूप से अनुकूलित होती है।
ऊँट का चमडा एकत्रित करने में कठिनाइयाँ
कुछ पशु जंगल में मर जाते हैं व कुछ रेत के धोरों पर, ऐसे में उनकी खाल निकालना संभव नहीं हो पाता। इसके अतिरिक्त ऊँट पालकों में ऊँट चमड़े के प्रति कम दिलचस्पी लेने से खालों को इकट्ठा करना भी कठिन हो जाता है।
चमड़े के प्रोसेसिंग का कार्य मुख्यता बड़े शहरों में होता है जहाँ तक उसे उठा कर ले जाने में समय व वित्तीय संसाधन की आवश्कयता पड़ती है । इस कारण से ऊँट पालक इस कार्य हेतु कम दिलचस्पी लेते है।
ऊँट अपने नाम को एक रंग के रूप में उधार देता है और वह शायद अपने चमड़े का "मूल" रंग है। फिर भी, आधुनिक टैनिंग तकनीकों में परिषोधन का मतलब है कि आप लगभग हर कल्पनीय रंग में ऊँट के चमड़े को पा सकते हैं जिसे आप चमड़े से जोड़ सकते हैं।
कुछ रंग ऐसे भी हैं जिन्हें आप आमतौर पर चमड़े के साथ नहीं जोड़ते हैं जैसे चांदी और सुनहरे सहित जो कि हस्तकला में बखूबी उभर कर आते हैं व उन आकृतिओं में जान डाल देते हैं।
ऊँट पालकों में ऊँट चमड़े के प्रति कम दिलचस्पी लेने से खालों को इकट्ठा करना भी कठिन हो जाता है
ऊँट के चमड़े के उत्पाद
ऊँट का चमड़ा, उन वस्तुओं के मामले में काफ़ी बहुमुखी है, जिन्हें इससे निकाला जा सकता है। चमड़े की जैकेट, हैंडबैग, पर्स, जूते, आइफोन कवर, रोज़मर्रा कि आवष्यक वस्तुएँ, कार सीट कवर इत्यादि के लिए ऊँट के चमड़े का उपयोग किया जा सकता है।
प्रोसेसिंग करना शायद एकमात्र उपयोग है इस कारण ऊँट चमड़े को अनुकूलित करने के लिए थोड़ा मुष्किल हो सकता है क्योंकि ऊँट की प्रकृति को देखते हुए उनका चमड़ा गाय / भैंस के खाल से छोटे होता हैं। सभी खाल का एक ही प्रक्रिया के माध्यम से प्रोसेस किया जाता है जिसमें उनकों भिगोना, सीमित करना, सतह को साफ़ करना और अपषिष्ट भाग को साफ़ करना ताकि उस पर परजीवी न लगे व गुणवता लाई जा सके।
संध्या झा उरमूल ट्रस्ट, बीकानेर, के साथ 'The Camel Partnership' परियोजना के अंतर्गत मीडिया फ़ेलो हैं। वह विज्ञान,पर्यावरण और कृषि से जुड़े मामलों के जानकार हैं